27-02-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

शिव शक्ति तथा पाण्डव सेना की विशेषताएँ

अव्यक्त बापदादा बोले

आज बापदादा अमृतवेले से विशेष सम्मुख आये वा दूरदेश में रहने वाले दिल से समीप रहने वाले डबल विदेशी बच्चों को देख रहे थे। बाप और दादा की आपस में आज मीठी रूह-रूहान चल रही थी। किस बात पर? ब्रह्मा बाप विशेष डबल विदेशी बच्चों को देख हर्षित हो बोले - कि कमाल है बच्चों की जो इतना दूर देशवासी होते हुए भी सदा स्नेह से एक ही लगन में रहते कि सभी को किस भी रीति से बापदादा का सन्देश जरूर पहुँचायें। उसके लिए कई बच्चे डबल कार्य करते हुए लौकिक और अलौकिक में डबल बिजी होते भी अपने आराम को भी न देखते हुए रात दिन उसी लगन में लगे हुए हैं। अपने खानेपीने की भी परवाह न करके सेवा की धुन में लगे रहते हैं। जिस प्युरिटी की बात को अननैचुरल जीवन समझते रहे, उसी प्युरटी को अपनाने के लिए इम्प्युरिटी को त्याग करने के लिए हिम्मत से, दृढ़ संकल्प से, बाप के स्नेह से, याद की यात्रा द्वारा शान्ति की प्राप्ति के आधार से, पढ़ाई और परिवार के संग के आधार से अपने जीवन में धारण कर ली है। जिसको मुश्किल समझते थे वह सहज कर ली है। ब्रह्मा बाप विशेष पाण्डव सेना को देख बच्चों की महिमा गा रहे थे। किस बात की? हर एक की दिल में है कि ‘पवित्रता ही योगी बनने का पहला साधन है।’ पवित्रता ही बाप के स्नेह को अनुभव करने का साधन है, पवित्रता ही सेवा में सफलता का आधार है। यह शुभ संकल्प हरेक की दिल में पक्का है। और पाण्डवों की कमाल यह है जो शक्तियों को आगे रखते हुए भी स्वयं को आगे बढ़ाने के उमंग-उत्साह में चल रहे हैं। पाण्डवों के तीव्र पुरूषार्थ करने की रफ्तार, अच्छी उन्नति को पाने वाली दिखाई दे रही है। मैजारिटी इसी रफ्तार से आगे बढ़ते जा रहे हैं।

शिव बाप बोले- पाण्डवों ने अपना विशेष रिगार्ड देने का रिकार्ड अच्छा दिखाया है। साथ-साथ हँसी की बात भी बोली। बीच-बीच में संस्कारों का खेल भी खेल लेते हैं। लेकिन फिर भी उन्नति के उमंग कारण बाप से अति स्नेह होने के कारण समझते हैं स्नेह के पीछे यह परिवर्तन ही बाप को प्यारा है। इसलिए बलिहार हो जाते हैं। बाप जो कहते, जो चाहते वही करेंगे। इस संकल्प से अपने आपको परिवर्तन कर लेते हैं। मुहब्बत के पीछे मेहनत, मेहनत नहीं लगती। स्नेह के पीछे सहन करना, सहन करना नहीं लगता। इसलिए फिर भी बाबा-बाबा कह करके आगे बढ़ते जा रहे हैं। इस जन्म के चोले के संस्कार पुरूषत्व अर्थात् हद के रचता पन के होते हुए फिर भी अपने को परिवर्तन अच्छा किया है। रचता बाप को सामने रखने कारण निरअहंकारी और नम्रता भाव इस धारणा का लक्ष्य और लक्षण अच्छे धारण किये हैं और कर रहे हैं। दुनिया के वातावरण के बीच सम्पर्क में आते हुए फिर भी याद की लगन की छत्रछाया होने के कारण सेफ रहने का सबूत अच्छा दे रहे हैं। सुना - पाण्डवों की बातें। बापदादा आज माशूक के बजाए आशिक हो गये हैं। इसलिए देख-देख हर्षित हो रहे हैं। दोनों का बच्चों से विशेष स्नेह तो है ना। तो आज अमृतवेले से बच्चों के विशेषताओं की वा गुणों की माला सिमरण की। आप लोगों ने 63 जन्मों में मालायें सिमरण की और बाप रिटर्न में अभी माला सिमरण कर रेसपाण्ड दे देते हैं।

अच्छा शक्तियों की क्या माला सिमरण की? शक्ति सेना की सबसे ज्यादा विशेषता यह है - स्नेह के पीछे हर समय एक बाप में लवलीन रहने की, सर्व सम्बन्धों के अनुभवों में अच्छी लगन से आगे बढ़ रही हैं। एक आँख में बाप दूसरी आँख में सेवा, दोनों नयनों में सदा यही समाया हुआ है। विशेष परिवर्तन यह है जो अपने अलबेलेपन, नाजुकपन का त्याग किया है। हिम्मत वाली शक्ति स्वरूप बनी हैं। बापदादा आज विशेष छोटी-छोटी आयु वाली शक्तियों को देख रहे थे। इस युवा अवस्था में अनेक प्रकार के अल्पकाल के आकर्षण को छोड़ एक ही बाप की आकर्षण में अच्छे उमंग उत्साह से चल रहे हैं। संसार को असार संसार अनुभव कर बाप को संसार बना दिया है। अपने तन-मन-धन को बाप और सेवा में लगाने से प्राप्ति का अनुभव कर आगे उड़ती कला में जा रही हैं। सेवा की जिम्मेवारी का ताज धारण अच्छा किया है। थकावट को कभी-कभी महसूस करते हुए, बुद्धि पर कभी-कभी बोझ अनुभव करते हुए भी बाप को फॉलो करना ही है। बाप को प्रत्यक्ष करना ही है, इस दृढ़ता से इन सब बातों को समाप्त कर फिर भी सफलता को पा रही हैं। इसलिए बापदादा जब बच्चों की मुहब्बत को देखते हैं तो बार-बार यही वरदान देते हैं -’’हिम्मते बच्चे मददे बाप’’। सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है ही है। बाप का साथ होने से हर परिस्थिति से ऐसे पार कर लेते जैसे माखन से बाल। सफलता बच्चों के गले की माला है। सफलता की माला आप बच्चों का स्वागत करने वाली है। तो बच्चों के त्याग, तपस्या और सेवा पर बापदादा भी कुर्बान जाते हैं। स्नेह के कारण कोई भी मुश्किल अनुभव नहीं करते। ऐसे है ना! जहाँ स्नेह है, स्नेह की दुनिया में वा बाप के संसार में बाप की भाषा में ‘मुश्किल शब्द’ है ही नहीं। शक्ति सेना की विशेषता है - मुश्किल को सहज करना। हर एक की दिल में यही उमंग है कि सबसे ज्यादा और जल्दी से जल्दी सन्देश देने के निमित्त बन बाप के आगे रूहानी गुलाब का गुलदस्ता लावें। जैसे बाप ने हमको बनाया है वैसे हम औरों को बनाकर बाप के आगे लावें। शक्ति सेना एक दो के सहयोग से संगठित रूप में भारत से भी कोई विशेष नवीनता विदेश में करने के शुभ उमंग में है। जहाँ संकल्प है वहाँ सफलता अवश्य है। शक्ति सेना हर एक अपने भिन्न-भिन्न स्थानों पर वृद्धि और सिद्धि को प्राप्त करने में सफल हो रही है और होती रहेगी। तो दोनों के स्नेह को देख, सेवा के उमंग को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। एक-एक के गुण कितने गायन करें लेकिन वतन में एक-एक बच्चे के गुण बापदादा वर्णन कर रहे थे। देश वाले सोचते-सोचते कई रह जायेंगे लेकिन विदेश वाले पहचान कर अधिकारी बन गये हैं। वह देखते रह जायेंगे, आप बाप के साथ घर पहुँच जायेंगे। वह चिल्लायेंगे और आप वरदानों की दृष्टि से फिर भी कुछ न कुछ अंचली देते रहेंगे।

तो सुना आज विशेष बापदादा ने क्या किया? सारा संगठन देख बापदादा भाग्यवान बच्चों के भाग्य बनाने की महिमा गा रहे थे। दूर वाले नजदीक के हो गये और नजदीक आबू में रहने वाले कितने दूर हो गये हैं! पास रहते भी दूर हैं। और आप दूर रहते भी पास हैं। वह देखने वाले और आप दिलतख्त पर सदा रहने वाले। कितने स्नेह से मधुबन आने का साधन बनाते हैं। हर मास यही गीत गाते हैं - बाप से मिलना है, जाना है। जमा करना है। तो यह लगन भी मायाजीत बनने का साधन बन जाती है। अगर सहज टिकट मिल जाए तो इतनी लगन में विघ्न ज्यादा पड़ें। लेकिन फुरी-फुरी तालाब करते हैं। इसलिए बूँद-बूँद जमा करने में बाप की याद समाई हुई होती है। इसलिए यह भी ड्रामा में जो होता है कल्याणकारी है। अगर ज्यादा पैसे मिल जाएँ तो फिर माया आ जाए फिर सेवा भूल जायेगी। इसलिए धनवान, बाप के अधिकारी बच्चे नहीं बनते हैं।

कमाया और जमा किया। अपनी सच्ची कमाई का जमा करना इसी में बल है। सच्ची कमाई का धन, बाप के कार्य में सफल हो रहा है। अगर ऐसे ही धन आ जाए तो तन नहीं लगेगा। और तन नहीं लगेगा तो मन भी नीचे ऊपर होगा। इसलिए तन-मन-धन तीनों ही लग रहे हैं। इसलिए संगमयुग पर कमाया और ईश्वरीय बैंक में जमा किया, यह जीवन ही नम्बरवन जीवन है। कमाया और लौकिक विनाशी बैंकों में जमा किया तो वह सफल नहीं होता। कमाया और अविनाशी बैंक में जमा किया तो एक पद्मगुणा बनता। 21 जन्मों के लिए जमा हो जाता। दिल से किया हुआ दिलाराम के पास पहुँचता है। अगर कोई दिखावे की रीति से करते तो दिखावे में ही खत्म हो जाता है। दिलाराम तक नहीं पहुँचता। इसलिए आप दिल से करने वाले अच्छे हो। दिल से दो करने वाले भी पद्मापद्म पति बन जाते हैं और दिखावा से हजार करने वाले भी पद्मापद्म पति नहीं बनते। दिल की कमाई, स्नेह की कमाई सच्ची कमाई है। कमाते किसलिए हो? सेवा के लिए ना - कि अपने आराम के लिए? तो यह है सच्ची दिल की कमाई। जो एक भी पद्मगुणा बन जाता है। अगर अपने आराम के लिए कमाते वा जमा करते हैं तो यहाँ भले आराम करेंगे लेकिन वहाँ औरों को आराम देने लिए निमित्त बनेंगे! दास-दासियाँ क्या करेंगे! रायल फैमली को आराम देने के लिए होंगे ना! यहाँ के आराम से वहाँ आराम देने के लिए निमित्त बनना पड़े। इसलिए जो मुहब्बत से सच्ची दिल से कमाते हो, सेवा में लगाते हो, वही सफल कर रहे हो। अनेक आत्माओं की दुआयें ले रहे हो। जिन्हों के निमित्त बनते हो वही फिर आपके भक्त बन आपकी पूजा करेंगे। क्योंकि आपने उन आत्माओं के प्रति सेवा की तो सेवा का रिटर्न वह आपके जड़ चित्रों की सेवा करेंगे! पूजा करेंगे! 63 जन्म सेवा का रिटर्न आपको देते रहेंगे। बाप से तो मिलेगा ही लेकिन उन आत्माओं से भी मिलेगा। जिनको सन्देश देते हो और अधिकारी नहीं बनते हैं तो फिर वह इस रूप से रिटर्न देंगे। जो अधिकारी बनते वह तो आपके सम्बन्ध में आ जाते हैं। कोई सम्बन्ध में आ जाते। कोई भक्त बन जाते। कोई प्रजा बन जाते। वैराइटी प्रकार की रिजल्ट निकलती है। समझा! लोग भी पूछते हैं ना कि आप सेवा के पीछे क्यों पड़ गये हो। खाओ-पियो मौज करो। क्या मिलता है जो इतना दिन-रात सेवा के पीछे पड़ते हो? फिर आप क्या कहते हो? जो हमको मिला है वह अनुभव करके देखो। ‘अनुभवी ही जाने इस सुख को’। यह गीत गाते हो ना! अच्छा –

सदा स्नेह में समाये हुए, सदा त्याग को भाग्य अनुभव करने वाले, सदा एक को पद्मगुणा बनाने वाले, सदा बापदादा को फॉलो करने वाले, बाप को संसार अनुभव करने वाले ऐसे दिलतख्तनशीन बच्चों को दिलाराम बाप का यादप्यार और नमस्ते।’’

विदेशी भाई बहिनों से पर्सनल मुलाकात - (1) अपने को भाग्यवान आत्मायें समझते हो? इतना भाग्य तो बनाया जो भाग्यविधाता के स्थान पर पहुँच गये। समझते हो यह कौन-सा स्थान है? शान्ति के स्थान पर पहुँचना भी भाग्य है। तो यह भी भाग्य प्राप्त करने का रास्ता खुला। ड्रामा अनुसार भाग्य प्राप्त करने के स्थान पर पहुँच गये। भाग्य की रेखा यहाँ ही खींची जाती है। तो अपना श्रेष्ठ भाग्य बना लिया।

अभी सिर्फ थोड़ा समय देना। समय भी है और संग भी कर सकते हो। और कोई मुश्किल बात तो है नहीं। जो मुश्किल होता उसके लिए थोड़ा सोचा जाता है। सहज है तो करो। इससे जो भी जीवन में अल्पकाल की आशायें वा इच्छायें हैं वह सब अविनाशी प्राप्ति में पूरी हो जायेंगी। इन अल्पकाल की इच्छाओं के पीछे जाना ऐसे ही है जैसे अपनी परछाई के पीछे जाना। जितना परछाई के पीछे जायेंगे उतना वह आगे बढ़ती है, पा नहीं सकते। लेकिन आप आगे बढ़ते जाओ तो वह आप ही पीछे-पीछे आयेगी। तो ऐसे अविनाशी प्राप्ति के तरफ जाने वाले के पीछे विनाशी बातें सब पूरी हो जाती हैं। समझा! सर्व प्राप्तियों का साधन यही है। थोड़े समय का त्याग सदाकाल का भाग्य बनाता है। तो सदा इसी लक्ष्य को समझते हुए आगे बढ़ते चलो। इससे बहुत खुशी का खजाना मिलेगा। जीवन में सबसे बड़े ते बड़ा खजाना खुशी है। अगर खुशी नहीं तो जीवन नहीं। तो अविनाशी खुशी का खजाना प्राप्त कर सकते हो।

सर्विस ही स्टेज बनाने का साधन है

(2) बापदादा बच्चों का सदा आगे बढ़ने का उमंग उत्साह देखते हैं। बच्चों का उमंग बापदादा के पास पहुँचता है। बच्चों के अन्दर है कि विश्व के वी.वी.आई.पी. बाप के सामने ले जाऊँ - यह उमंग भी साकार में आता जायेगा। क्योंकि नि:स्वार्थ सेवा का फल जरूर मिलता है। सेवा ही स्व की स्टेज बना देती है। इसलिए यह कभी नहीं सोचना कि सर्विस इतनी बड़ी है मेरी स्टेज तो ऐसी है नहीं। लेकिन सर्विस आपकी स्टेज बना देगी। दूसरों की सर्विस ही स्व उन्नति का साधन है। सर्विस आपेही शक्तिशाली अवस्था बनाती रहेगी। बाप की मदद मिलती है ना। बाप की मदद मिलते-मिलते वह शक्ति बढ़ते-बढ़ते वह स्टेज भी हो जायेगी। समझा! इसलिए यह कभी नहीं सोचो कि इतनी सर्विस मैं कैसे करूँगा-करूँगी, मेरी स्टेज ऐसी है। नहीं। करते चलो। बापदादा का वरदान है - आगे बढ़ना ही है। सेवा का मीठा बंधन भी आगे बढ़ने का साधन है। जो दिल से और अनुभव की अथॉरिटी से बोलते हैं उनका आवाज़ दिल तक पहुँचता है। अनुभव की अथॉरिटी के बोल औरों को अनुभव करने की प्रेरणा देते हैं। सेवा में आगे बढ़ते-बढते जो पेपर आते हैं वह भी आगे बढ़ाने का ही साधन हैं। क्योंकि बुद्धि चलती है, याद में रहने का विशेष अटेन्शन रहता है। तो यह भी विशेष लिफ्ट बन जाती है। बुद्धि में सदा रहता कि हम वातावरण को कैसे शक्तिशाली बनायें। कैसा भी बड़ा रूप लेकर विघ्न आए लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं का उसमें फायदा ही है। वह बड़ा रूप भी याद की शक्ति से छोटा हो जाता है। वह जैसे कागज का शेर।

ब्राजील, अर्जनटाइना, मैक्सिको तथा अन्य दूरदेश वालों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - (1) सदा अपने को बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? दूर रहते भी सदा समीप का, साथ का अनुभव करते हो? सदा अपने को बाप के वरदानों से आगे बढ़ने वाली श्रेष्ठ आत्मायें समझ सहज आगे बढ़ते रहते हो ना? कभी भी कोई मुश्किल अनुभव हो तो सदा बाप के साथ का अनुभव करने से सेकण्ड में मुश्किल सहज हो जायेगी। जहाँ बाप है वहाँ मुश्किल हो नहीं सकती। सदा सफलता का अनुभव करते रहेंगे। जो निमित्त समझकर कार्य करते हैं उन्हें ‘सफलता’ स्वत: प्राप्त होती है। ‘निमित्त भाव’ ही सफलता का साधन है। इस स्मृति रूपी चाबी को सदा साथ रखना। दूर होते भी सभी हिम्मतवान बच्चे हैं। सभी को बापदादा - ‘‘हिम्मते बच्चे मददे बाप’’ के टाइटिल से याद प्यार देते हैं। जितना स्नेह से याद करते हैं उतना ही बापदादा के पास सबका स्नेह पहुँचता है। बापदादा स्नेह की रिटर्न में पद्मगुणा याद प्यार देते हैं।

अर्जनटाइना की सभी आत्मायें ‘अर्जुन’ समान प्यासी आत्मायें हैं। दिन रात वह घड़ी देखते रहते हैं कि कौन-सी घड़ी आयेगी जब मधुबन निवासी बनेंगे। बापदादा बच्चों की इस लगन को देखते हैं, जानते हैं कि सभी अर्जुन समान आत्मायें हैं। उन्हों को कहना कि अर्जुन के लिए ही विशेष बाप आये थे और आये हैं। इसलिए दूर बैठे भी सिकीलधे हो। दूर रहने वाले बच्चों का दिलतख्त पर सदा नम्बर है। सभी बच्चों के पत्र बापदादा के पास पहले ही पहुँच गये हैं। सभी की पुकार और उल्हनें बाप के पास पहुँचे। बापदादा कहते हैं - ड्रामा में कभी भी किसी बच्चों का ऐसा भाग्य नहीं हो सकता जो दूर होने के कारण वंचित रह जाएं। ड्रामा में सभी को अधिकार मिलना ही है। बापदादा देख रहे हैं-कि बच्चे कैसे लवलीन आत्मा बन, मायाजीत बन, आगे बढ़ने के उमंग उत्साह में सफलता को पा रहे हैं और आगे भी सफलता का अनुभव करते रहेंगे। बापदादा के पास सभी के खुशी की रूह-रूहान पहुँचती है। बापदादा भी सभी बच्चों को रूह-रूहान का रेसपाण्ड देते रहते हैं - और आज भी दे रहे हैं कि सदा विजयी रत्न हो और विजय आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। जहाँ स्व उन्नति का अटेन्शन है वहाँ न स्वयं के प्रति प्राबलम है, न सेवा में प्राब्लम है! क्योंकि अटेन्शन सर्व प्रकार के टेन्शन को उड़ा देता है। अभी जो विशेष सम्पर्क में हैं उन्हों को और समीप लाने का अटेन्शन रखना। सम्पर्क वाले और सम्बन्ध में आ जाएं क्योंकि उन्हों की धरनी अच्छी है तब तो सम्पर्क में हैं। दूरदेश में भी अनेक प्यासी आत्मायें छिपी हुई हैं, उन छिपी हुई आत्माओं को बाप के अधिकारी बनाना ही है।